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चल रही थी छोटी पहाड़ी, ऊँचा स्वर्ग में ही जाना था, सबसे ऊँचा बनना था उसे, आकाश की ओर पहुँचना था। सुनलो ये रहस्यमयी कविता, जहाँ सूरज उगता है सचमुच, आज हम इसे सीखेंगे, बढ़ाएं आपने ध्यान सुनिए बच्चों।
"ओह छोटी पहाड़ी से कह देता, कहाँ जाना है तुझे फिर, आकाश तो छेड़ा है बड़ी तेरी, ऊँचा बन सकता हूँ मैं शायद।" लेकिन सुन नहीं पाता छोटी पहाड़ी, गलती तो हो रही है वहीं, सबकी मदद की वह नहीं करती, ठिक से सुन नहीं पाती सबकी अपीं।
स्वर्ग की ओर जाना चाहती छोटी पहाड़ी, अलंकार सही करेंगे हम, शब्दों को पकड़ेंगे हम सब ठीक से, ये सीखेंगे पहले ही आपको हम। सही से सुनो हर बात की, बनो मास्टर हम शब्दों के, चित्रों को देखो और बोलो आवाज से, ये बढ़ाएंगे आपके ढंग को।
ओह छोटी पहाड़ी सुन लो जरा, जहाँ छूना चाहती तुम आकाश, भले ही छोटे हों तुम, पर ज्ञान से बढ़कर कितने तेजस्वी आपके इंद्रजाल।
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