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बहुत साल पहले की बात है, जब ब्रह्मा देव ने अपने आप को जगत के सृजनकर्ता के रूप में जाना। उन्होंने देखा की देवी दुर्गा ने उनका आह्वान किया, एक बड़ी और महत्वपूर्ण कार्य के लिए। उन्होंने माता दुर्गा से पूछा की क्या है यह कार्य? माता दुर्गा ने कहा, "ब्रह्मा देव, हमारी सबसे प्रिय पुत्री अपर्णा हैं, वह खानेवाली नाग कानप ने कहा है कि जब तक वे दुष्ट आसुर महिषासुर को नष्ट नहीं कर डालेंगी, तब तक उन्हें साक्षात शक्ति प्राप्ति नहीं होगी।"
ब्रह्मा देव को यह ध्यान में आया की यदि ब्रह्मा देव, विष्णु भगवान और महेश भगवान की प्रवर्तनी अपर्णा नहीं करेंगे तो ये दुष्टासुर अपर्णा को नष्ट कर डालेंगे। तब वे मस्तिष्क की मालाहारी लहर, जिसे वे मेथाये कानप बोलते हैं, की ओर आगे बढ़ गए। ब्रह्मा देव ने अपनी पुत्री अपर्णा को पुकारते हुए कहा, "ओह अपर्णा! तुम्हारे सामर्थ्य को दिखाओ और महिषासुर को नष्ट करो।"
अपर्णा ने ब्रह्मा देव से कहा, "बापू, मैं माता दुर्गा की प्रार्थना करके ही धरती पर आ पाऊंगी। भगवान तो साथ होंगे।" ब्रह्मा देव ने हार-मूँगे रंग के रंगो की दो कंगन उसके हाथ में बांधे ब्रह्मा देव और विष्णु भगवान ने उसे बहुत खूबसूरतई सजाया। तब अपर्णा तयकरण के लिए धरती पर उतरी।
पूरे स्थान और दिन-रात ब्रजन्तिओ से भरे वन में अपनी माता दुर्गा की आंखों के संदर्भ में सिर्फ अपर्णा एवं उसके भाइयों को बस स्वीकार करने के लिए धरती पर जन्म ले आए । माता दुर्गा ने चाहा कि अपर्णा की उम्र हमेशा चाहे। ऐसा होने पर उसकी प्रथम पूजा प्रारम्भ हो।”
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