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एक समय की बात है, एक छोटा सा बच्चा नाम भावेश अपने परिवार के साथ ही रहता था। उसके परिवार में माता-पिता और छोटी बहन होती थी। उसके पिताजी बहुत ही समर्पित होते थे और उनकी इच्छा थी कि भावेश धार्मिकता के माध्यम से कुछ सीखे। एक सुबह, भावेश के पिताजी ने सोचा कि वे उसे संत भावेश के बारे में बताएंगे, जो भगवान श्री कृष्ण के द्वारका स्थित इस्कॉन मंदिर में रहते थे। इस मंदिर को देखने से पहले, उन्होंने खुद को तैयार किया और परिवार को भी साथ लिया।
जब वे मंदिर पहुंचे, तो दूसरे भक्तों के साथ मिलकर नाम संकीर्तन और पूजा का आनंद लिया। मंदिर के आस-पास अनुयायी लोग खुशी-खुशी गीत गा रहे थे और एकदम खुश और मेहमाननवाज़ी से बच्चों की भीड़ भगवान क्रिश्च्च्न की कथाओं को सुन रही थी। भावेश को देखते ही, संत भावेश ध्यान से देखने लगे और भावेश के पास आए। वह उसके साथ बातचीत करने बैठे और भावेश को बहुत सारे ज्ञानवर्धक किस्से और कथाएं सुनाईं।
पूजा के बाद, भावेश और उसका परिवार संत भावेश के साथ बैठी। संत जी उनसे कहने लगे, "भावेश, भगवान श्री कृष्ण हमेशा अपने भक्तों की सेवा करते हैं और सभी का ध्यान रखते हैं। उनका इस्कॉन मंदिर उनके भक्तों की भागदौड़ से दूर उनके और करीब लाता है। यहां हर रोज़ आरती, पूजा और कथाएं होती हैं, जो हमें भक्ति और प्रेम की शक्ति प्रदान करती हैं।" भावेश ने कहा, "संत जी, मैं आज के बाद भगवान कृष्ण की सेवा करने और मंदिर जाने का प्रयास करूंगा।" संत जी उसे धन्यवाद दिया और उसकी कामना की कि वह बच्चों के मध्य भव्यता और दया फैलाने वाले बने।
इस तरह, भावेश इस्कॉन मंदिर व धर्म की महत्वपूर्ण बातें सीखने और साथी बनाने का वादा कर रहा था। अब से उसके जीवन में धर्म और मन में भगवान की भक्ति का प्रभाव बढ़ने लगा। इस तरह, चंद मिनटों में ही भावेश की नींद आ गई और वह अपने ख्वाबों के नगरी में चला गया। संत भावेश का आशीर्वाद सबसे बढ़कर था और उसने भावेश को एक अच्छा और धार्मिक बच्चा बनाने के लिए उसे प्रेरित किया।ं
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